वाराणसी:- मंगलवार, हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाया जाता है।
29 अक्टूबर को धनतेरस के साथ दीपोत्सव शुरू रहा है। इस साल दीप पर्व 5 नहीं 6 दिन का रहेगा, क्योंकि कार्तिक अमावस्या 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को दो दिन रहेगी। 31 तारीख की रात लक्ष्मी पूजा, 1 नवंबर को स्नान-दान की अमावस्या, 2 को गोवर्धन पूजा और 3 को भाई दूज मनेगी।
इस दिन भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। इसके साथ ही धनतेरस के खास मौके पर सोने-चांदी, बर्तन आदि चीजों की भी खरीदारी करते हैं। वहीं इस बार धनतेरस की तिथि को लेकर लोगों के बीच कंफ्यूजन बना हुआ है। अगर आप भी उनमें से हैं तो आज हम आपको बताने वाले हैं धनतेरस की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में ।
धनतेरस की तिथि और शुभ मुहूर्त –
वैदिक पंचांग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि की शुरुआत मंगलवार 29 अक्टूबर 2024 की सुबह 10 बजकर 31 मिनट से और इस तिथि का समापन 30 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट पर होगा। ऐसे में 29 अक्टूबर को धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा।
वैदिक पंचांग के अनुसार, धनतेरस के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त 29 अक्टूबर की शाम 6 बजकर 31 मिनट से शुरू होगा और 8 बजकर 13 मिनट पर समापन होगा।
1 घंटा 40 मिनट है धनतेरस पूजा मुहूर्त धनतेरस के दिन शाम के समय कुबेर देव और माता लक्ष्मी की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। उसके बाद धन्वंतरि देव, माता लक्ष्मी और कुबेर देवता के सामने घी का दीपक जलाएं। दीपक जलाने के बाद उन्हें फल और फूल चढ़ाएं। फिर माता लक्ष्मी और कुबेर देव को उनका प्रिय भोग लगाएं। पूजा के बाद इस मंत्र का भी जाप करें। मंत्र इस प्रकार है – ‘ॐ ह्रीं कुबेराय नमः’ मंत्र का जाप करें। आखिरी में आरती करें।
धनतेरस की शाम न करें ये गलती –
धनतेरस पर सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति के लिए विशेष रूप से माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। मान्यता है कि धनतेरस की शाम उन वस्तुओं को किसी को देने से बचें जो माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि इन चीजों को किसी और को देने से घर की बरकत, सुख-शांति उसी के साथ चली जाती है। इसके कारण आपकी आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होती है। मान्यता है कि धनतेरस पर प्रदोषकाल में धन या पैसा, झाड़ू, प्याज-लहसुन, नमक और चीनी कीसी को नहीं देना चाहिए।
चतुर्दशी तिथि प्रारंभः 30 अक्टूबर दोपहर 01:16 बजे से
चतुर्दशी तिथि समाप्तः 31 अक्टूबर दोपहर 03:53 बजे तक
नरक चतुर्दशी को कई और नामों से भी मनाया जाता है जैसे- नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी आदि। दीपावली से पहले मनाए जाने के कारण इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है। घर के कोनों में दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है।
चतुर्दशी तिथि प्रारंभः 30 अक्टूबर दोपहर 01:16 बजे से
चतुर्दशी तिथि समाप्तः 31 अक्टूबर दोपहर 03:53 बजे तक।
कब मनाएं दिवाली –
ज्योतिषाचार्य आनंद शास्त्री ने बताया – 31 अक्टूबर को दिवाली मनाएं तो कुछ का मानना है कि 1 नवंबर को दिवाली मनाना चाहिए। ऐसी स्थिति में स्थानीय परंपराओं के आधार पर आपको निर्णय करना होगा बहरहाल हम जानते हैं। दिवाली के मुहूर्त को लेकर दोनों तर्क और मुहूर्त –
जिस दिन अमावस्या होता है उस दिन ही दीपावली मनाया जाता है। शाम को अमावस्या लगी हुई है। दीपदान अमावस्या तिथि में ही किया जाता है अमावस्या रात में ही लगती है इसलिए 31 तारीख को ही दीपावली मनाई जाएगी –
पूजा करने का पहला मुहूर्त- शाम 5 बजकर 36 मिनट से रात 8 बजकर 11 मिनट के बीच रहेगा।
दूसरा मुहूर्त- शाम 6 बजकर 25 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 15 मिनट तक रहेगा और ये पूजन वृषभ लग्न में होगा. इन दोनों मुहूर्त में आप लक्ष्मी-गणेश जी का पूजन कर सकते हैं.
व्यापारियों के लिए पूजा का मुहूर्त –
1 नवंबर को व्यापारी अपनी दुकानों में दिवाली का पूजन कर सकते हैं. जिसका मुहूर्त मध्यरात्रि 12 बजकर 55 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 10 मिनट तक मिलेगा.
कार्तिक अमावस्या आरंभः 31 अक्टूबर गुरुवार 2024 को दोपहर 3.52 बजे से
अमावस्या तिथि समापनः 1 नवंबर शुक्रवार 2024 को शाम 06.16 बजे तक।
ज्योतिष आचार्य सतीश शुक्ला ने बताया –
द्वारिका-तिरुपति, अयोध्या में 31 को और रामेश्वरम में 1 नवंबर को दीपावली –
काशी, उज्जैन, मथुरा-वृंदावन, नाथद्वारा, द्वारिका, तिरुपति, अयोध्या मंदिर में 31 अक्टूबर को दीपावली मनेगी। वहीं, रामेश्वरम, इस्कॉन और सभी निम्बार्क संप्रदाय वाले मंदिरों में 1 नवंबर को मनाई जाएगी। दैनिक भास्कर ने अखिल भारतीय विद्वत परिषद, काशी विद्वत परिषद और देशभर के केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष से बात की। दोनों तिथियों पर ज्योतिषियों के अलग-अलग तर्क हैं।
कब है भाई दूज –
कार्तिक मास द्वितीया तिथि का आरंभ 2 नवंबर को रात 8:22 बजे हो जाएगा और कार्तिक द्वितीया तिथि 3 नवंबर को रात में 10:06 बजे तक रहेगी। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार 3 नवंबर को भाई दूज का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन सुबह में 11 बजकर 39 मिनट तक सौभाग्य योग रहेगा। इसके बाद शोभन योग शुरू हो जाएगा। इसलिए भाई दूज के दिन पूजा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त 11:45 मिनट तक रहेगा।
भाई दूज 2024 शुभ मुहूर्त रविवार 3 नवंबर 2024 को ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:51 बजे से 5:43 बजे तक रहेगा। ज्योतिषी आनंद शास्त्री ने बताया कि दूसरा पहर यानी दोपहर का समय 1:10 बजे से 3:22 बजे तक रहेगा। इस बीच विजय मुहूर्त 1:54 बजे से 2:38 बजे तक रहेगा। तिलक के लिए शुभ मुहूर्त तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त दोपहर 1:16 बजे से 3:27 बजे तक रहेगा, जिसमें लगभग ढाई घंटे का समय बहनों को अपने भाइयों को तिलक करने के लिए मिलेगा।
भाई दूज का महत्व
हिंदू धर्म में भाई दूज एक प्रमुख त्यौहार है। यह भाई बहन के बीच मान सम्मान और प्रेम प्रकट करने का दिन होता है। शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि पर यम अपनी बहन के घर गए थे। वहां उनकी बहन ने उनका खूब आदर सत्कार किया था, जिससे प्रसन्न होकर यमराज ने वरदान दिया कि, जो भाई बहन इस दिन यमुना में स्नान करके यम पूजा करेंगे। वह मृत्यु के बाद यमलोक नहीं जाएगा।
भाई दूज को लेकर एक अन्य पौराणिक कथा यह भी है कि भगवान कृष्ण जब नरकासुर राक्षस का वध करके द्वारका लौटे थे, तो भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फूल, मिठाई और अनेकों दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। इस दिन सुभद्रा ने भगवान कृष्ण के मस्तक पर टीका लगाकर उनकी लंबी आयु की कामना की थी। तभी से भाई दूज का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हो गई।