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देश में ही नहीं विदेशों में भी प्रकाश मेहरा बने पत्रकारिता की मिसाल –

दिल्ली:- पत्रकारिता का हमारा पेशा हमसे असमान्य मेहनत की मांग करता है. इस पेशे में तमाम किस्म के मुद्दों पर गहरी समझ की दरकार होती है और साथ-साथ फौरन से पेशतर फैसले लेने की क्षमता. चूंकि पत्रकारों को समाज के ताकतवर तबकों के दबाव और रोष का भी लगभग सामना करना पड़ सकता है, इसलिए किसी खबर पर काम करने के सभी चरणों के दौरान आपमें ऐसी स्थितियों से निपटने का कौशल और रणनीति होना भी जरूरी है — कहानी के छपने से पहले और छपने के बाद भी. दुशवारियों से भरे इस पेशे में आपको स्व-रक्षा कवच भी विकसित करने होंगे. इन कवचों को जंग लगने से बचाने और कारगर बनाए रखने के लिए समय-समय पर उनकी साफ-सफाई और देखरेख भी जरूरी है.

इसी कड़ी में आज देश-विदेशों में (जैसे- लंदन,कनाडा,अमेरिका आदि ) प्रकाश मेहरा की प्रकाशित पुस्तक “वे टू जर्नलिज्म” ने पत्रकारिता जगत में एक नई मिसाल कायम की है निष्पक्ष पत्रकारिता और तमाम विकारों को दूर करने के लिए ये पुस्तक सिर्फ हमारे देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी काफ़ी चर्चित है। 

 

इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य निष्पक्ष पत्रकारिता से लेकर पत्रकारिता का संघर्ष और नैतिक साहस, लिखने का कौशल जैसे विषयों पर विशेष ध्यान दिया गया है जिससे आधुनिक समय में पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों को काफ़ी मदद मिलेगी और निष्पक्ष पत्रकारिता करने में कामयाबी मिलेगी। हालांकि इस पुस्तक को लेकर चर्चा इसलिए भी है क्योंकि पुस्तक में एक निष्पक्ष और बेबाक पत्रकार स्वर्गीय श्री रोहित सरदाना का भी जिक्र है जिन्होंने लेखक प्रकाश मेहरा को काफ़ी प्रेरणा दी। जिन्होंने कभी हार नहीं मानी हर एक तर्क का जवाब रोहित सरदाना के पास होता था चाहे फिर न्यूज़ डिबेट्स हो या फिर किसी विशेष रिपोर्ट्स पर। इसी बीच पत्रकारिता के लिए नई पुस्तक “वे टू जर्नलिज्म” से देश-विदेश के पत्रकारों को काफ़ी प्रेरणा और हौसला मिलने की उम्मीद है। 

 

*पत्रकारिता में पांच तत्व जरूरी !*

 

पुस्तक के लेखक प्रकाश मेहरा कहते हैं कि “मेरा सुझाव है कि पत्रकारों को एक साथ पांच तत्वों पर काम करना चाहिए, ताकि वे विकार, अप्रासंगिकता और बेकार काम का शिकार ना बनें. यह पांच तत्व हैं: खबर को सूंघने की शक्ति, दुरुस्त मूल्यांकन, नैतिक साहस, विषय पर पकड़ और लिखने का कौशल. आपकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप अपने पूरे कार्य जीवनकाल में खुद को इन पांच तत्वों में निपुणता पाने के लिए किस हद तक धकेल सकते हैं”

 

*विचारों को जिंदा रहने दीजिए: प्रकाश मेहरा*

 

वरिष्ठ पत्रकार और प्रकाशित पुस्तक के लेखक प्रकाश मेहरा कहते हैं कि “बंदूक की आवाज से भी ज्यादा खतरनाक होती है विचारों की क्रांति। क्योंकि बंदूक की आवाज कुछ देर के बाद सुनाई नहीं पड़ती लेकिन विचारों की क्रांति का असर बरसों बरस रहता है। ऐसे में विचारों को जिंदा रहने दीजिए। उन्होंने न्यायपालिका पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कुछ काम अपनी साख बचाने के लिए भी लोग किया करते हैं जबकि आम लोगों को तारीख पर तारीख तारीख पर तारीख मिलता रहता है। ऐसे में केस लड़ने वालों से जाकर पूछे कि न्यायालय के प्रति उनकी धारणा क्या है।”

 

*सत्य और न्याय की आवाज़ उठाना !*

 

पुस्तक की कुछ पंक्तियों में लेखक लिखते हैं “सत्य और न्याय के लिए आवाज उठाना आज के भारत में बहुत से लोगों को बेहद नैतिकता भरा काम लगता है. वह इसलिए क्योंकि दिक्कत उन्हीं के साथ है. इसकी वजह या तो उनका संदेहास्पद अतीत होता है, या, ताकतवर हितों की दलाली और रसूखदारों से रिश्ते बनाए रखने की मजबूरी या समाज में अपनी बनी बनाई साख से अपदस्थ हो जाने की फिक्र. लेकिन आपको इस पेशे के बुनियादी सिद्धांतों को रखने वाले लोगों भर भरोसा होना चाहिए, जिन्होंने पत्रकारिता को धारदार, तथ्यात्मक और सशक्त बनाया. उनकी मंशा हमें सत्तारूढ़ों को जवाबदेह बनाने की थी. ना सिर्फ राजनीतिक सत्ता को, बल्कि हर प्रकार के शक्तिशाली लोगों को. अगर आपके काम से लोगों में असहजता का भाव उत्पन्न होता है, तो समझिए कि आपके काम का असर हुआ है. इस पेशे में लोग आपको हैरान-परेशान करते रहेंगे. एक पुरानी कहावत है: लोगों की बजाय सिद्धांतों को अपना आदर्श बनाएं.”

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