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दशरथ व कौशल्या बने बिना अपने बच्चों से राम बनने की उम्मीद न करें – महादेव कुड़ियाल

 

 

✍️ नवीन तिवारी

 

वाराणसी:– मलदहिया स्थित निरंकारी सत्संग भवन में आज जोनल स्तर का विशाल निरंकारी बाल समागम आयोजित किया गया।जिसमें सन्त निरंकारी मण्डल ज़ोन न.64 वाराणसी के पांचों जिले वाराणसी,चन्दौली, गाजीपुर,मिर्ज़ापुर और सोनभद्र के सैकड़ों निरंकारी बाल सन्त शामिल हुए और अपने गीतों,कविताओं,विचारों और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से निरंकारी मानवतावादी संदेशों को पहुंचाने का अति सुंदर,रोचक व सफल प्रयास किया।इस बाल समागम की अध्यक्षता मंसूरी उत्तराखंड से पधारे केंद्रीय निरंकारी ज्ञानप्रचारक श्री महादेव कुड़ियाल ने किया।

श्री कुड़ियाल ने बाल समागम में एकत्र हज़ारों निरंकारी बच्चों और अभिभावक भक्तों को सम्बोधित करते हुए कहा कि बचपन से ही संस्कार देने का प्रभाव था कि दशरथ व कौशल्या पुत्र श्रीराम भगवान राम कहलाये। इसलिए स्वयं दशरथ व कौशल्या बने बिना अपने बच्चों से राम बनने की कत्तई उम्मीद ना करें।

श्री कुड़ियाल ने कहा कि बच्चे साफ़ दर्पण के समान होते हैं जैसा देखते और सीखते हैं हूबहू वही प्रदर्शित करते हैं।बच्चों के अंदर ही देश व दुनियां का भविष्य छिपा होता है।बाल सुलभ मन में चतुराई व चालाकी नहीं होती।बच्चे सहज स्वभाव के प्रभाव से ही बोलते हैं।आज यहां जो ये बच्चे भक्ति व श्रद्धा से भरे गीत,विचार व कविताएं प्रस्तुत किये वो निरंकारी परिवार का ही प्रभाव है।निरंकारी मिशन के माध्यम से निरंकारी सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज आज पूरे विश्व के अभिभावकों और बच्चों को रूहानियत का ही संस्कार देने में दिन रात सक्रीय हैं।

आपने कहा कि घर,परिवार व समाज को भविष्य में साफ़-सुथरा व सुंदर देखना है तो वह समय बचपन वाला ही है।बचपन में सीखी अच्छी व बुरी आदतें ही आगे अपना प्रभाव दिखाती हैं।इसलिए बचपन से ही बच्चों में अच्छे संस्कार देने की ज़रूरत है।जो निरंकारी मिशन कर रहा है बाल सत्संग व समागम के द्वारा। उन्हीं लोगों का नाम इतिहास में आज सम्मानित रूप में दर्ज़ है जो बचपन में सन्तों-महात्माओं के साथ बिताया।ज्ञान किसी उम्र का मोहताज नहीं होता।जैसे नचिकेता,ध्रुव व प्रह्लाद आदि।

अंत में आपने बच्चों से कहा कि अपने माता पिता की वसीयत से ही नहीं उनके नसीहत से भी प्यार करो।सन्त सज्जनों, सत्संगों व सद्गुरुओं का निरंतर सानिध्य प्राप्त करो व अनुसरण इसी तरह करते जाओ यही आज निरंकारी सद्गुरु चाहते हैं। जैसे जहाज आसमान में उड़ता है किन्तु ठहरता जमीन पर ही है इसी तरह आप उन्नति व तरक़्क़ी के खुले आसमान में बेशक़ खूब उड़ो मगर अपने संस्कार व सभ्यता के ज़मीन को न छोड़ो।इसी में आपकी और घर,परिवार व समाज की सार्थकता है और सुंदरता है।

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