यह एक ऐसी प्रथा थी जिसमें पति की मौत होने पर पति की चिता के साथ ही उसकी विधवा को भी जला दिया जाता था। कई बार तो रजामंदी होती थी तो कभी-कभी उनको ऐसा करने के लिए जबरन मजबूर किया जाता था। पति की चिता के साथ जलने वाली महिला को सती कहा जाता था जिसका मतलब होता है पवित्र महिला। चिता पर जलने के दौरान उनकी चीखों और दर्द की पीड़ा को कोई भी ध्यान नहीं देता था –
पंडित रमन कुमार शुक्ल राष्ट्रीय उपध्यक्ष श्री काशी विश्वनाथ धार्मिक अनुसंधान संस्थान ट्रस्ट वाराणसी (रजि ०)
वाराणसी:- सती_प्रथा को मूर्खों ने कुरीति बताकर प्रचारित किया। धर्मशास्त्र पति के मृत्यु के बाद पत्नी को सती होने की आज्ञा देता है, पुराणों में भी सती होने की विधि है।
पति के शोक से दुःखी पत्नी सती होने से पहले यदि मायके में हो तो माता-पिता की और ससुराल में सास-ससुर की आज्ञा लेकर विधिवत् सौभाग्यवती वृद्धाओं को वायन (वैया) दान करके,अग्निहोत्र करके अग्नि से प्रार्थना करे =
“हे अग्निदेव ! आप सभी प्राणियों के अंतःकरण में निवास करते हैं,पति के शोक से दुःखी मैं आग में प्रवेश करती हूँ।आप मुझे पतिलोक ले जायें।” ऐसी प्रार्थना करके चिता की परिक्रमा करे । शरीर पर नीला वस्त्र धारण करके मुख में मोती और मणियों का फल रखकर पति के वियोग में वह स्त्री सन्तप्त सती हो।
किन्तु वर्तमान काल में शास्त्रीय बातों को न जानने के कारण जनता में विपरीत प्रचार होता है।राजनैतिक नेता व शास्त्रज्ञ विद्वान् भी इन बातों को नहीं मानते, विरुद्ध आचरण की प्रेरणा देते हैं।हमारे देश में अनेकों सतियां हुई हैं।उनमें सती देवी वृंदा तथा चित्तौड़ की अनेकों स्त्रियां हैं।किन्तु प्रत्येक स्त्री को सती होने की आज्ञा नहीं है।पहले परीक्षा होती है । जिसमें धर्म दीपक जलाया जाता है।उसकी लौ को उंगलियों से छूने पर जिसका हाथ नहीं जलता,उसको ही सती होने की शास्त्र ने आज्ञा दी है।
यदि वह सुयोग्या नहीं है, तो ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए, वैधव्य धर्म का पालन करे तथा सिर के बाल बनवाये।क्योंकि पति के मृत्यु के बाद यदि स्त्री सिर के बाल बाँधती है, तो पति सहित वह नरक को प्राप्त होती है। एक समय भोजन करे,सफेद वस्त्र धारण करे, पान-तम्बाकू न खाये,श्रृंगार न करे,तपोमय जीवन बिताये– यह हमारी भारतीय परम्परा है।
किसी को जबर्दस्ती जलाने की आज्ञा नहीं है।यदि कहीं कोई जबर्दस्ती ऐसा करता है तो उसपर अवश्य ही रोक लगना चाहिए।स्वेच्छा से पति-वियोग में सती होने वाली स्त्रियों पर सरकार रोक तो लगाती है,किन्तु जो निर्धन कन्याएं धनाभाव के कारण विवाह नहीं कर पाती , क्योंकि दहेज बहुत मांगा जाता है,ऐसी बालिकाएं दुःखी होकर आत्महत्या कर लेती हैं
यदि किसी का जैसे-तैसे विवाह हो भी जाये, तो वर पक्ष की मांग पूरी न होने के कारण वे जला दी जाती है। इसकी ओर जनता और नेताओं का ध्यान नहीं जाता। किन्तु कोई स्त्री शास्त्रानुसार,पातिव्रत्य धर्म से प्रेरित होकर, पति का वियोग न सहन कर पाने के कारण यदि सती होती है, तो हाहाकार मच जाता है।
यह महादुर्भाग्य है कि हमारे परम पूज्यनीय अनन्त श्रीविभूषित पुरीपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी निरञ्जनदेव तीर्थ जी ने जब सती धर्म का समर्थंन किया,तब सरकार तथा जनता उनके पीछे पड़ गई थी।महाभारत में कहा है कि इन सात के द्वारा पृथ्वी धारण की गई है —
“गोभि: विप्रैश्च वेदैश्च सतीभि: सत्यवादिभि:।
यतिभि: दानशीलैश्च सप्तभि: धार्यते मही:।।”
【गौ- ब्राह्मण- वेद- सतीयां- सत्यवादी- संन्यासी तथा दानवीर – इन सात के द्वारा पृथ्वी धारण की जाती हैं।】
किन्तु इस कराल – कलिकाल में इन सातों पर ही प्रहार हो रहा है।सती-सम्बन्धी सिद्धान्तों का शंकरभट्ट ने “मीमांसा-बालप्रकाश” नाम के ग्रन्थ में तथा वेदभाष्यकार माधवाचार्य जी ने “पराशर-भाष्य” में तथा कमलाकर भट्ट ने “निर्णय-सिन्धु” में प्रतिपादन किया है । जो लोग इसकी विधि और उपयोगिता को जानते भी नहीं,वे “कुरीति-कुरीति” चिल्लाकर गर्दभ-रोदन करते हैं।पहले उक्त ग्रन्थों को पढ़कर सम्यक् प्रकारेण जानें,फिर चिल्ल-पों मचायें।