वाराणसी
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जन्म-मृत्यु के चक्र का अन्त निवृत्ति मार्ग से ही सम्भव- ’परमाराध्य’ शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘१००८’

 

 

 

 

✍️नवीन तिवारी

 

वाराणसी:-    प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों प्रकार के धर्म हमारे शास्त्रों ने बताये हैं। संसार को आगे बढाने के लिए दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। प्रवृत्ति धर्म को बिन्दु परम्परा और निवृत्ति धर्म को नाद परम्परा कहा गया है। जन्म-मृत्यु के चक्र का अन्त करना हो तो निवृत्ति मार्ग को अपनाना चाहिए क्योंकि इसी यह चक्र छूट सकता है।

 

उक्त बातें परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘१००८’ ने श्रीविद्यामठ में आयोजित अपने 23वें संन्यास समज्या के अवसर पर कही।

उन्होंने दण्डी संन्यासियों की घटती संख्या पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि वर्ष 1986 में काशी में जब संन्यासी समष्टि भण्डारे का आयोजन होता था तब साढे तीन सौ दण्डी महात्मा होते थे और आज यह संख्या घटकर पचास तक सिमट गयी है जो कि चिन्ता का विषय है।

 

उन्होंने आगे कहा कि ज्योतिर्मठ में गिरि पर्वत और सागर नाम के संन्यासी दुर्लभ हो रहे थे इसीलिए उन्होंने प्रयागराज कुम्भ महापर्व के अवसर पर परम्परा को जीवन्त करने के उद्देश्य से गिरि, पर्वत और सागर नाम के संन्यासी शिष्य बनाये।

 

आज प्रातः 7 बजे सूर्य पूजन के पश्चात् काशीस्थ दण्डी संन्यासियों की समर्चना का कार्यक्रम हुआ जिसमें शङ्कराचार्य जी महाराज की ओर से श्रीविद्यामठ के प्रभारी ब्रह्मचारी परमात्मानन्द जी ने आगन्तुक महात्माओं का स्वागत किया। उन्हें नूतन काषाय वस्त्र, रुद्राक्ष कुण्ठा, मालपुए और दक्षिणा प्रदान किया गया।

 

संन्यास समज्या कार्यक्रम में भाग लेने के लिए छत्तीसगढ से स्वामी श्रीमज्ज्योतिर्मयानन्द सरस्वती जी महाराज, कानपुर से स्वामी भूताद्युदितानन्द पर्वत जी महाराज, बाराबंकी से स्वामी असम्भवसम्भवानन्द सरस्वती जी महाराज पधारे।

 

सायंकालीन सत्सङ्ग सभा में प्रसिद्ध भजन गायक श्री कृष्ण कुमार तिवारी जी ने सुमधुर भजन और काव्य पाठ प्रस्तुत किया।

 

ब्रह्मलीन द्विपीठाधीश्वर जी महाराज की पूर्णाभिषिक्त शिष्या साध्वी पूर्णाम्बा जी द्वारा सङ्कलित वाक्यामृत पुस्तक तथा श्री यतीन्द्रनाथ चतुर्वेदी जी द्वारा रचित गोधूलि पुस्तक का विमोचन परमाराध्य के करकमलों से सम्पन्न हुआ। अधिवक्ता पं श्री रमेश उपाध्याय जी ने गौमाता राष्ट्रमाता का चित्र भेंट किया।

 

प्रमुख रूप से आचार्य पं कमलाकांत त्रिपाठी, आचार्य पं परमेश्वर दत्त शुक्ल,मीडिया प्रभारी-संजय पाण्डेय, योगेश ब्रह्मचारी ,रवि त्रिवेदी, सत्येन्द्र मिश्र ,अनिल पाण्डेय,हजारी कीर्ति शुक्ला,हजारी सौरभ शुक्ला,सदानंद तिवारी,अखिलेश दुबे,मोहित गुप्ता,सतीश अग्रहरि,अनिल तिवारी,आदि विशिष्ट जन उपस्थित रहे।

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