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केवल सरकार की आलोचना के लिए किसी पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं होना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट –

 

 

दिल्ली:- सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (4 अक्टूबर, 2024) को कहा कि सरकार के आलोचक माने जाने वाले मीडियाकर्मियों पर आपराधिक मामले नहीं लगाए जा सकते। साथ ही, उत्तर प्रदेश पुलिस को योगी आदित्यनाथ प्रशासन में प्रमुख पदों पर बैठे अधिकारियों की तैनाती में “जातिवादी झुकाव” के बारे में अपने लेख के लिए एक पत्रकार के खिलाफ दंडात्मक कदम उठाने से रोक दिया।

“लोकतांत्रिक देशों में, अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। पत्रकारों के अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सुरक्षित हैं। सिर्फ़ इसलिए कि किसी पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना माना जाता है, लेखक के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला नहीं चलाया जाना चाहिए,” न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने अपने न्यायिक आदेश में ज़ोर देकर कहा।

मुताबिक, जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि लोकतांत्रिक देश में विचार व्यक्त करने की आजादी का सम्मान किया जाना चाहिए और संविधान के अनुच्छेद-19(1)(ए) के तहत पत्रकारों के अधिकार सुरक्षित किए गए हैं.

यह पीठ एक पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश में अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग की है. यह एफआईआर राज्य में सामान्य प्रशासन के जातिगत झुकाव पर एक खबर प्रकाशित करने को लेकर दर्ज की गई थी। 

अख़बार के अनुसार, स्वतंत्र पत्रकार होने का दावा करने वाले पंकज कुमार नाम के एक व्यक्ति ने उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा प्रशासनिक पदों के लिए एक विशेष जाति के लोगों को तरजीह देने के बारे में खबर लिखने के लिए लखनऊ के हजरतगंज थाने में उपाध्याय के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी.

इस संबंध में याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए पीठ ने कहा कि इस बीच खबर के संबंध में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा, ‘लोकतांत्रिक देशों में अपने विचार रखने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा के लिए है. सिर्फ़ इसलिए कि किसी पत्रकार के लिखे हुए को सरकार की आलोचना माना जा रहा, उसके खिलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज नहीं किए जाने चाहिए.’

शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को नोटिस भी जारी कर चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है. अब इस मामले पर अगली सुनवाई 5 नवंबर को होगी.अधिवक्ता अनूप प्रकाश अवस्थी के जरिये दायर याचिका में उन्होंने दावा किया कि ‘यादव राज बनाम ठाकुर राज’ शीर्षक वाली रिपोर्ट के बाद 20 सितंबर को उनके विरुद्ध लखनऊ के हजरतगंज थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी.

इसमें कहा गया है कि एफआईआर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 353 (2) (सार्वजनिक उत्पात के लिए उकसाने वाले बयान), 197 (1) (सी) (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक आक्षेप या दावे प्रकाशित करना), 356 (2) (मानहानि), 302 (किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर शब्द आदि बोलना) और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के प्रावधानों के तहत (सजा) के तहत दर्ज की गई है.

याचिका में आगे कहा गया है इस मामले में उनके अदालत का दरवाजा खटखटाने का कारण यूपी पुलिस के आधिकारिक एक्स हैंडल द्वारा कानूनी कार्रवाई की चेतावनी देना है, जबकि उन्हें ये भी नहीं पता कि उनके खिलाफ इस संबंध में प्रदेश में कितने मामले दर्ज हुए हैं.

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