केरल की धर्मनिरपेक्ष विरासत की पुनः पुष्टि!

एम ए बेबी
त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) ने अपने प्लैटिनम जयंती समारोह के उपलक्ष्य में वैश्विक अय्यप्पा संगमम का आयोजन किया था, जिसे बड़ी सफलता मिली। 20 सितंबर को पंपा में हुए संगमम में 15 देशों और 14 राज्यों से 4,126 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें 2,125 अन्य राज्यों से और 182 विदेशों से आए थे। यह एक महत्वपूर्ण मंच रहा, जहाँ विकास परियोजनाओं पर चर्चा हुई — जैसे सबरीमाला मास्टर प्लान, प्रस्तावित सबरीमाला हवाई अड्डा और अन्य पहल, जिनका उद्देश्य बुनियादी ढाँचे और तीर्थयात्रा के अनुभव को बेहतर बनाना है। यह एक राजनीतिक वक्तव्य भी था, जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि केरल का सार्वजनिक जन जीवन विभाजनकारी ताकतों के आगे नहीं झुकेगा। इसने यह भी घोषित किया कि धर्मनिरपेक्षता कोई अमूर्त संवैधानिक सिद्धांत नहीं है, बल्कि केरल की तीर्थ परंपराओं में निहित एक जीवंत प्रथा है।
सामाजिक ताने-बाने का सार
सबरीमाला केवल एक मंदिर नहीं है ; यह केरल के सामाजिक और सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक है। जाति-आधारित और धार्मिक सीमाओं को लांघकर, तीर्थयात्री हफ्तों की तपस्या और आत्म-अनुशासन के बाद पवित्र पर्वत पर चढ़ते हैं, जो समानता और सामूहिक आध्यात्मिक साधना की पुष्टि करता है। भगवान अयप्पा के एक मुस्लिम साथी को समर्पित वावर नाडा की उपस्थिति, विश्वासों के प्रति आपसी सद्भाव की याद दिलाती है। तीर्थयात्रा का मार्ग ऐतिहासिक महत्व के एक ईसाई तीर्थस्थल, अर्थुनकल चर्च से भी जुड़ता है, जिससे एक ऐसा नेटवर्क बनता है, जो धार्मिक सीमाओं से परे है।
समान रूप से प्रतीकात्मक है हरिवरसनम नामक भक्ति गीत का गायन, जिसे मंदिर में हर शाम अयप्पा और उनके भक्तों के लिए लोरी के रूप में बजाया जाता है। इस गीत की रचना दिवंगत जी. देवराजन ने की थी, जो एक प्रसिद्ध संगीतकार थे और एक कट्टर नास्तिक और कम्युनिस्ट भी थे, और इसे के. जे. येसुदास, जो एक प्रतिष्ठित गायक और जन्म से ईसाई थे, की आवाज़ में अमर कर दिया गया। ये सभी तत्व मिलकर सबरीमाला की धर्मनिरपेक्ष, सामंजस्यपूर्ण और समावेशी विरासत को उजागर करते हैं। यह एक ऐसा स्थान है, जहाँ भक्ति को कभी भी सांप्रदायिक पहचान तक सीमित नहीं किया जाता, बल्कि एक सार्वभौमिक मानवीय अभिव्यक्ति के रूप में मनाया जाता है।
संगमम की संकल्पना करके, टीडीबी ने इस दीर्घकालिक धर्मनिरपेक्ष परंपरा का जश्न मनाया और इसकी पुष्टि की। इसने इस मान्यता का संकेत दिया कि सबरीमाला किसी एक संप्रदाय या समुदाय का नहीं, बल्कि पूरे विश्व का है, जो मंदिर में स्वागत करने वाले शब्दों में परिलक्षित होता है, तत्त्वम् असि। इसका अर्थ है, तुम वही हो। यह बताता है कि सभी में एक ही भावना अंकुरित होती है, या कोई भी पराया नहीं है। यह एक ऐसी अवधारणा है, जिसे सभी द्वारा स्वीकार किया जा सकता है। फिर भी, विपक्षी दलों ने इस प्रगतिशील कदम का विरोध करना चुना। इसके अलावा, सांप्रदायिक ताकतों के प्रभुत्व वाले मंच सबरीमाला कर्म समिति ने वैश्विक अयप्पा संगमम के ठीक दो दिन बाद 22 सितंबर को पंडालम में एक तथाकथित भक्तजन संगमम (श्रद्धालुओं का समूह) आयोजित करने की अपनी योजना की घोषणा की। बहरहाल, आम जनता के साथ-साथ अयप्पा भक्तों ने भी उनके नापाक इरादों को उजागर किया है, जो इसमें निराशाजनक भागीदारी से स्पष्ट हो गया।
यहां, यह ध्यान देने की जरूरत है कि इस विशिष्ट मामले में, केरल में हमारे साथियों द्वारा हिंदुत्व सांप्रदायिकता के खिलाफ सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों को व्यापक रूप से संगठित करने का प्रयास किया गया था ; जैसा कि हाल ही में संपन्न 24वीं पार्टी कांग्रेस की राजनीतिक लाइन में निर्देशित किया गया है। कर्म समितियों के आह्वान के प्रति आम जनता की निराशाजनक प्रतिक्रिया उस वैचारिक बढ़त को रेखांकित करती है, जिसे हम अयप्पा संगमम और विश्वासा संगमम के इर्द-गिर्द के विमर्श के संबंध में हासिल करने में सक्षम रहे हैं।
पुनर्जागरण, सुधार और प्रतिगामिता
आस्थावानों और सांप्रदायिक ताकतों के बीच अंतर को समझना बेहद ज़रूरी है। आस्थावान लोग आस्था से अनुशासन, नैतिक शक्ति और भाईचारे की भावना प्राप्त करते हैं। सांप्रदायिक ताकतें संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए उनकी धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग करती हैं। केरल का इतिहास दर्शाता है कि आस्थावान लोग अक्सर सुधार और प्रगति के पक्ष में खड़े रहे हैं। श्री नारायण गुरु, अय्यंकाली और अन्य सुधारकों के नेतृत्व में संघर्ष समाज और धार्मिक परंपराओं के भीतर से उभरे, और फिर भी उन्होंने मुक्ति, समानता और सामाजिक परिवर्तन की ओर इशारा किया। वैश्विक अय्यप्पा संगमम इसी सुधारवादी परंपरा का हिस्सा था।
सबरीमाला का धर्मनिरपेक्ष चरित्र आकस्मिक नहीं है ; यह सदियों के सुधार, बातचीत और आम भक्तों के संघर्ष का परिणाम है। अतीत में सबरीमाला और अन्य मंदिरों में हुए सुधार बाहर से थोपे जाने से नहीं, बल्कि समाज के भीतर से ही आए थे। वामपंथियों का हमेशा से मानना रहा है कि जातिगत पदानुक्रम और सांप्रदायिक विभाजन को कम करने के लिए ऐसे आंतरिक सुधार आंदोलन आवश्यक हैं। यही कारण है कि संगमम को सांप्रदायिक बनाने के प्रयासों का वैचारिक स्पष्टता के साथ विरोध किया गया। भाजपा और उसके सहयोगी लंबे समय से राजनीतिक लाभ के लिए सबरीमाला को हथियार बनाने की कोशिश करते रहे हैं, प्रगतिशील सुधारों को आस्था पर हमले के रूप में चित्रित करते रहे हैं। लेकिन तथ्य स्पष्ट हैं : सबरीमाला कभी भी सांप्रदायिक ताकतों का हिस्सा नहीं रहा। इसकी समावेशिता, समुदायों के बीच इसके संबंध, सुधारों का इतिहास आदि, सांप्रदायिक आख्यानों के विरोध में खड़े हैं।
अय्यप्पा संगमम के आयोजन को सीपीआई (एम) द्वारा एक धार्मिक आयोजन में हस्तक्षेप करने के प्रयास के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया गया था, क्योंकि कम्युनिस्ट धर्म के आलोचक हैं। कम्युनिस्ट समाज के सभी पहलुओं का अध्ययन और आलोचना करते हैं — सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि — ताकि एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित किया जा सके। इसलिए, स्वाभाविक रूप से, धर्म भी हमारे रडार के दायरे में आता है, क्योंकि यह समाज का अभिन्न अंग है। मार्क्स की प्रसिद्ध उक्ति है : “धर्म उत्पीड़ित प्राणी की आह है, एक हृदयहीन दुनिया का हृदय है, और आत्माहीन परिस्थितियों की आत्मा है। यह लोगों के लिए अफीम है।” वह इस तथ्य पर प्रकाश डाल रहे थे कि धर्म उत्पीड़ितों को उनके दुखों को भूलने में मदद करता है। यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि, मार्क्स के समय, अफीम का उपयोग चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा दर्द निवारक के रूप में किया जाता था।
संकल्प के साथ आगे बढ़ें
किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या परंपरा में हस्तक्षेप किए बिना, वैश्विक अय्यप्पा संगमम ने सबरीमाला को एक वैश्विक तीर्थस्थल के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। दुनिया के सबसे बड़े वार्षिक तीर्थस्थल के रूप में, सबरीमाला लंबे समय से भक्ति, अनुशासन और बंधुत्व का प्रतीक रहा है। संगमम का आयोजन निस्संदेह इस सार्वभौमिक आकर्षण को मान्यता देने, सबरीमाला को वैश्विक सांस्कृतिक मानचित्र पर स्थापित करने और केरल की धर्मनिरपेक्ष विरासत की पुनः पुष्टि करने की दिशा में एक कदम था