वाराणसी
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काशी के विभिन्न घाटों में श्रावणी उपाकर्म पर्व बड़े उत्साह से मनाया गया –

 

✍️नवीन तिवारी

 

वाराणसी:- प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी राजस्थान संस्कृत कॉलेज समिति मीर घाट संस्था द्वारा आचार्य भाल शास्त्री जी के नेतृत्व में श्रावणी उपाकर्म ऋषि पूजन यज्ञोपवीत पूजन संपन्न हुआ। 

सावन की पूर्णिमा पर ब्राह्मणों ने काशी के गंगा तटों पर श्रावणी उपाकर्म किया। इस दौरान उन्होंने सूर्य से तेज मांगा। गंगा का जलस्तर बढ़े होने के बावजूद उनका उत्साह कम नहीं हुआ। सावन की पूर्णिमा पर काशी में शनिवार को श्रावणी उपाकर्म मनाया गया। इस दौरान काशी के लगभग सभी घाटों पर हेमाद्रि संकल्प, दशविध स्नान, ऋषि तर्पण, देव और पितृ तर्पण के साथ ही भगवान सूर्य से ओज व तेज की कामना की गई। शनिवार को अहिल्याबाई घाट गंगा तट पर शास्त्रार्थ महाविद्यालय व विप्र समाज के संयुक्त तत्वावधान में हर साल की तरह श्रावणी उपाकर्म का भव्य आयोजन किया गया। गंगा का जलस्तर बढ़े होने के बावजूद भी प्रतिवर्ष के नेमी व बटुक ब्राह्मण सैकड़ों की संख्या में उपस्थित हुए।

श्रावणी उपकर्म तथा ऋषिपूजन सांगवेद विद्यालय रामघाट वाराणसी।

संयोजक राष्ट्रपति पुरस्कृत पूर्व प्राचार्य डॉ. गणेश दत्त शास्त्री ने बताया कि यह अनुष्ठान आत्मशुद्धि, ज्ञान के प्रति समर्पण और ऋषियों के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। प्रारंभ में पं. विकास दीक्षित के आचार्यत्व में शुक्लयजुर्वेदीय माध्यानंदिनी शाखा के ब्राह्मणों ने गंगा तट पर एक साथ स्वर वेद मंत्रों का पाठ किया। जिसमें भगवान सूर्य से तेज व ऊर्जा मांगी गई। सह संयोजक व शास्त्रार्थ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पवन कुमार शुक्ल ने कहा कि श्रावणी पर्व पर द्विजत्व के संकल्प का नवीनीकरण किया जाता है। उसके लिए परंपरागत ढंग से तीर्थ अवगाहन, दशस्नान, हेमाद्रि संकल्प एवं तर्पण आदि कर्म किए जाते हैं।

श्रावणी के कर्मकांड में पाप-निवारण के लिए हेमाद्रि संकल्प कराया जाता है, जिसमें भविष्य में पातकों, उपपातकों और महापातकों से बचने, परद्रव्य अपहरण न करने, परनिंदा न करने, आहार-विहार का ध्यान रखने, हिंसा न करने, इंद्रियों का संयम करने एवं सदाचरण करने की प्रतिज्ञा ली जाती है।

यह सृष्टि नियंता के संकल्प से उपजी है। हर व्यक्ति अपने लिए एक नई सृष्टि करता है। यह सृष्टि यदि ईश्वरीय योजना के अनुकूल हुई, तब तो कल्याणकारी परिणाम उपजते हैं, अन्यथा अनर्थ का सामना करना पड़ता है। अपनी सृष्टि में चाहने, सोचने तथा करने में कहीं भी विकार आया हो, तो उसे हटाने तथा नई शुरूआत करने के लिए हेमाद्रि संकल्प करते हैं। ऐसी क्रिया और भावना ही कर्मकांड का प्राण हैदशविधि स्नान व पंचगव्य का प्राशन हुआ। 

कठिन संकल्प के बाद शुद्धि के लिए गाय के गोबर, मिट्टी, भस्म, दूर्वा, अपामार्ग व कुशा से मार्जन के साथ पंचगव्य जिसमें गोमय (गाय का गोबर), गोदधि (गाय के दूध से बनी दही), गोघृत (गाय का शुद्ध घी), गोदुग्ध (गाय का दूध) गोमूत्र (गाय का मूत्र ) आदि शामिल हैं, से स्नान व प्राशन किया गया।

यज्ञोपवीत संस्कार कर नया जनेऊ धारण किया

यह संस्कार जनेऊ बदलने और नया जनेऊ धारण करने का कर्म है। गंगा तट पर स्नान व तर्पण के पश्चात सभी द्विज ब्राह्मण शास्त्रार्थ महाविद्यालय के सरस्वती सभागार में उपस्थित हुए। यहां गणपति व ऋषि पूजन के साथ पुराने जनेऊ को बदलकर नया जनेऊ धारण किया गया।क्या होता है श्रावणी उपाकर्म।

काशी सहित पूरे उत्तर भारत में जनेऊ को बदलने और उसको पूजन करने का कार्य इसी दिन होता है। इसे श्रावणी उपाकर्म कहते हैं। श्रावणी उपाकर्म में यज्ञोपवीत पूजन और उपनयन संस्कार करने का विधान है। श्रावण पूर्णिमा पर रक्षासूत्र बांधने, यज्ञोपवीत धारण करने, व्रत करके गंगा स्नान करने, दान करने, ऋषि पूजन करने, सूर्य पूजन, तर्पण करने और तप करने का महत्व रहता है। गंगा के किनारे काशी के सभी घाटों पर, गुरु के सानिध्य में या समूह में रहकर श्रावणी उपाकर्म हुई।

ब्राह्मण परिवार के लोग इस उपाकर्म को पूरे विधि-विधान से करते हैं। उत्तर भारत में इसका विशेष आयोजन होता है। गंगा में बाढ़ के कारण इस बार यह आयोजन काशी की गलियों में संपन्न कराया जाएगा।यह एक वैदिक परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है और इसका गहरा धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व है। यह दिन न केवल रक्षाबंधन के लिए खास है, बल्कि यह वैदिक परंपरा में आत्मशुद्धि, ज्ञानार्जन और नए संकल्प लेने का भी एक महत्वपूर्ण अवसर है। इसे रक्षाबंधन और ऋषि पूजन का दिन भी कहा जाता है। इस बार यजुर्वेद उपाकर्म शनिवार, 9 अगस्त 2025 को किया जाएगा। 

श्रावणी उपाकर्म क्या है: ‘श्रावणी उपाकर्म’ दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘श्रावणी’ (श्रावण मास से संबंधित) और ‘उपाकर्म’ (निकट आने वाला कर्म या अर्थात् वैदिक अध्ययन का आरंभ)। यह मुख्यतः ब्राह्मण समुदाय और वैदिक अध्ययन करने वाले लोगों द्वारा किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, लेकिन इसके संदेश सभी के लिए प्रासंगिक हैं।श्रावणी उपाकर्म का महत्व:

1. आत्मशुद्धि और प्रायश्चित: श्रावणी उपाकर्म यह पर्व वर्ष भर में जाने-अनजाने में हुए पाप कर्मों के प्रायश्चित का अवसर प्रदान करता है। लोग पवित्र नदियों या तीर्थस्थलों पर स्नान करके और विशेष अनुष्ठान करके अपने शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि करते हैं।यज्ञोपवीत परिवर्तन: जिन पुरुषों का यज्ञोपवीत संस्कार (जनेऊ) हो चुका होता है, वे इस दिन अपने पुराने जनेऊ को विधि-विधान से उतारकर नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं। यह वैदिक ज्ञान और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के नए संकल्प का प्रतीक है।3. वेदों का अध्ययन आरंभ: श्रावणी उपाकर्म के दिन वेदों का अध्ययन पुनः आरंभ करने का संकल्प लिया जाता है। प्राचीन काल में वर्षा ऋतु में अध्ययन का अवकाश होता था, और श्रावणी पूर्णिमा से वेदों के पठन-पाठन की शुरुआत होती थी।

 

4. ऋषि तर्पण: इस दिन ऋषियों का आवाहन और तर्पण किया जाता है। ऋषि परंपरा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है, जिन्होंने हमें वेदों और ज्ञान का मार्ग दिखाया।

 

5. ज्ञान और विकास का संदेश: श्रावणी उपाकर्म हमें स्वाध्याय, सुसंस्कारों के विकास और ज्ञान के अवतरण की प्रेरणा देता है। यह पर्व जीवन में भौतिकता और आध्यात्मिकता के समन्वय का संदेश देता है।रक्षाबंधन से जुड़ाव: श्रावणी उपाकर्म उसी दिन किया जाता है जिस दिन रक्षाबंधन का पावन पर्व होता है, जहां बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं। यह एक ही दिन में शारीरिक, मानसिक और सामाजिक शुद्धि और संबंधों के महत्व को दर्शाता है।

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