वाराणसी

काशी के भगवान बीएचयू के जाने-माने कार्डियोथोरेसिक सर्जन पद्म श्री हार्ट सर्जन डॉ. टी.के. लहरी –

 

 

वाराणसी:-  आज से लगभग 6-7 साल पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुछ हस्तियों को अपने आवास पर मिलने को बुलाया, उन मिलने वाली हस्तियों में एक नाम इस बुजुर्ग का भी था जो हाथ मे एक बैग औऱ एक छता लिए ये बुजुर्ग पैदल चलते हुए आप फ़ोटो में देख रहें है।

इन्होंने ने योगी जी द्वारा भेजें गये अधिकारियों को कहा कि में मुख्यमंत्री के आवास में जाकर नही मिल सकता, उनको मिलना है तो मेरे ओपीडी में आकर मिलें।

ये है बीएचयू के जाने-माने कार्डियोथोरेसिक सर्जन पद्म श्री डॉ. टी.के. लहरी (डॉ तपन कुमार लहरी) , अभी रिटायर हो गए लेकिन आज भी वँहा निःशुल्क सेवा देते है। हाथ मे बैग ओर एक छता लिए आज भी BHU की तरफ पैदल जाते हुए इनको देखा जा सकता है।

 

जानकार ऐसा भी बताते हैं कि यदि कहीं मुख्यमंत्री सचमुच मिलने के लिए ओपीडी में पहुंच गए होते तो डॉ लहरी उनसे भी मरीजों के क्रम में ही मिलते और मुख्यमंत्री को लाइन में लगकर इंतजार करना पड़ता।

 

 इससे पहले डॉ लहरी तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को भी इसी तरह न मिलने का दो टूक जवाब देकर निरुत्तरित कर चुके हैं। सचमुच ‘धरती के भगवान’ जैसे डॉ लहरी वह चिकित्सक हैं, जो वर्ष 1994 से ही अपनी पूरी तनख्वाह गरीबों को दान करते रहे हैं। अब रिटायरमेंट के बाद उन्हें जो पेंशन मिलती है, उसमें से उतने ही रुपए लेते हैं, जिससे वह दोनो वक्त की रोटी खा सकें। बाकी राशि बीएचयू कोष में इसलिए छोड़ देते हैं कि उससे वहां के गरीबों का भला होता रहे !

 

ऐसे ही डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है। तमाम चिकित्सकों से मरीज़ों के लुटने के किस्से तो आए दिन सुनने को मिलते हैं लेकिन डॉ. लहरी देश के ऐसे डॉक्टर हैं, जो मरीजों का निःशुल्क इलाज करते हैं। अपनी इस सेवा के लिए डॉ. लहरी को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016 में चौथे सर्वश्रेष्ठ नागरिक पुरस्कार ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया जा चुका है।

 

डॉ लहरी ने सन् 1974 में प्रोफेसर के रूप में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में अपना करियर शुरू किया था और आज भी वह बनारस में किसी देवदूत से कम नहीं हैं। बनारस में उन्हें लोग साक्षात भगवान की तरह जानते-मानते हैं। जिस ख्वाब को संजोकर मदन मोहन मालवीय ने बीएचयू की स्थापना की, उसको डॉ लहरी आज भी जिन्दा रखे हुए हैं।

 

वर्ष 2003 में बीएचयू से रिटायरमेंट के बाद से भी उनका नाता वहां से नहीं टूटा है। आज, जबकि ज्यादातर डॉक्टर चमक-दमक, ऐशोआराम की जिंदगी जी रहे हैं, लंबी-लंबी मंहगी कारों से चलते हैं, मामूली कमीशन के लिए दवा कंपनियों और पैथालॉजी सेंटरों से सांठ-गांठ करते रहते हैं, वही मेडिकल कॉलेज में तीन दशक तक पढ़ा-लिखाकर सैकड़ों डॉक्टर तैयार करने वाले डॉ लहरी के पास खुद का चारपहिया वाहन नहीं है।

बहरहाल रिटायर्ड होने के बाद भी मरीजों के लिए दिलोजान से लगे रहने वाले डॉ. टीके लहरी को ओपन हार्ट सर्जरी में महारत हासिल है। वाराणसी के लोग उन्हें महापुरुष कहते हैं। अमेरिका से डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद 1974 में वह बीएचयू में 250 रुपए महीने पर लेक्चरर नियुक्त हुए थे। गरीब मरीजों की सेवा के लिए उन्होंने शादी तक नहीं की। सन् 1993 से ही उन्होंने वेतन लेना बंद कर दिया था। रिटायर होने के बाद जो पीएफ मिला, वह भी उन्होंने बीएचयू के लिए छोड़ दिया।

 डॉ. लहरी बताते हैं कि रिटायरमेंट के बाद उन्हें अमेरिका के कई बड़े हॉस्पिटल्स से ऑफर मिला, लेकिन वह अपने देश के मरीजों की ही जीवन भर सेवा करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। वह प्रतिदिन सुबह छह बजे बीएचयू पहुंच जाते हैं और तीन घंटे ड्यूटी करने के बाद वापस घर लौट आते हैं। इसी तरह हर शाम अपनी ड्यूटी बजाते हैं। इसके बदले वह बीएचयू से आवास के अलावा और कोई सुविधा नहीं लेते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page