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कार्यकाल कम ही क्यों न हो पर हो निर्णायक, हिन्दू समाज के लिए बड़ा सोचना होगा – दिव्य अग्रवाल

कार्यकाल कम ही क्यों न हो पर हो निर्णायक, हिन्दू समाज के लिए बड़ा सोचना होगा

 

मुस्लिम समाज की चालाकी कहें या हिन्दू समाज की अकर्मण्यता,एलन कुर्दी एक मुस्लिम बच्चा सबको स्मरण होगा जो समुद्र किनारे मृत अवस्था में तब मिला था जब मुस्लिम समाज बतौर शरणार्थी दूसरे देशों में घुसपैठ करना चाहते थे। विश्व उस बच्चे के प्रति संवेदना दिखाते हुए मुस्लिम समाज को अन्य देशों में पनाह दिलवाना चाहता था जबकि स्वयं मुस्लिम देश अपने यहां जगह देना नहीं चाहते थे । उस बच्चे के कारण पुरे विश्व के मानवाधिकार जीवित हो गए थे,आज शिव खोड़ी में निर्दोष हिन्दू बच्चो को गोली से भून दिया गया और पूरा विश्व मौन है विश्व के सभी मानवाधिकार लकवा ग्रस्त हो गए हैं क्यूंकि मारने वाले मुस्लिम और मरने वाले हिन्दू हैं। हिन्दू समाज को अपने लोगों की मौत पर रोना तक नहीं आता शायद इसीलिए पुरे विश्व में हिन्दू ही ऐसी कौम बची है जिसका जीवन पशुओं से भी सस्ता है। भारत के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाले आदरणीय मोदी जी भारत का गौरव हैं इसमें कोई संदेह नहीं पर अब महत्वपूर्ण यह नहीं की मोदी जी ने इस देश का नेतृत्व कितने वर्ष किया, पूरे विश्व में सनातनी हिन्दुओ का मात्र एक देश बचा है भारत,आज उन सनातनियों को कितना एवं कितनी जल्दी सशक्त बनाया जा सके यह महत्वपूर्ण है । क्योंकि भारत का लम्बे समय तक नेतृत्व तो नेहरू जी ने भी किया था और वो उस समय के लोकप्रिय नेता भी थे परन्तु उनके द्वारा लिए गए निर्णयों से सनातन समाज की आज क्या दुर्गति हो रही है यह सर्वविदित है । सनातनी समाज शैक्षणिक,आध्यात्मिक,आर्थिक और शस्त्र शक्ति के अभाव में है,कहने को ऊपरी तौर पर कुछ भी कहा जाए परन्तु सनातनी समाज के मध्यमवर्गीय वर्ग को अपने बच्चो की शिक्षा और इलाज में ही इतना संघर्ष करना पड़ता है की यदि उसके परिवार के लोग इस्लामिक जिहाद द्वारा पीड़ित हों भी तो वह अपना भाग्य मानकर अपने लोगो की मृत्यु पर रोने के अतिरिक्त कुछ कर नहीं सकता । आवश्यकता है की प्रत्येक हिन्दू परिवार में वैध शस्त्र हों , परिवारों की शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं प्रत्येक गाँव , शहर में इतनी अच्छी और सुलभ हो की परिवारों पर आर्थिक बोझ न हो । अन्यथा विश्वास कीजिए साहब आर्थिक तंगी ,अच्छे शिक्षा स्कूलों और अस्पतालों के अभाव की मार से कुछ हिन्दू परिवार यदि बच भी गए तो उन्हें इस्लामिक जिहाद निगल जाएगा । एक विचारक एवं लेखक की कलम समाज की पीड़ा लिख सकती है पर इस पीड़ा का अहसास देश के नेतृत्व तक कब पहुंचेगा , कितना पहुंचेगा यह तो समाज के ऊपर है।

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