वाराणसी
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कला का सबसे बड़ा कैनवास है काशी -प्रो उत्तमा दीक्षित

 

वाराणसी:-   काशी चित्रकला के लिए विश्व का सबसे बड़ा कैनवास है। चित्रकला, फोटोग्राफी या कला के किसी भी विधा के लिए यहाँ कदम कदम पर सृजनात्मक दृष्टिकोण के लिए अवसर है। काशी में व काशी के आसपास चित्रकला के प्रमाण प्रागैतिहासिक काल से है। लखनिया दरी में यह गुफ़ाओ में मिलते हैं जिसमे खड़िया रामरज, कोयला से बने चित्र हैं। सभ्यता के विकास के साथ ही काशी में स्थापत्य और कला का विकास हुआ। काशी के व्रत त्यौहार आस्था का भाव काशी की चित्रकला में भी दिखाई पड़ा। जिसे आटे के चाक पूरने व विवाह के अलंकरण के रूप में हम देख सकते हैं। हल्दी, रोली से बनाए जाने वाले हाथ के थापों से भी कलाकारी का विकास हुआ। मांगलिक अवसरों पर महावर आदि इसका प्रमाण है। काशी में कई ऐसे मन्दिर हैं जिनकी भित्तियों पर प्राकृतिक रंगों द्वारा देवी देवताओं के अवतार के चित्र बनाए गए।

उक्त बातें “चित्र कला में काशी” शीर्षक पर पंद्रह दिवसीय काशी केंद्रित कार्यशाला- “काशी:संस्कृति, परम्परा एवं परिवर्तन” के बारहवें दिन मुख्य वक्ता प्रो उत्तमा दीक्षित ने भारत अध्ययन केंद्र, सभागार, बीएचयू में कही। चित्रकला के वर्तमान स्थिति पर बताते हुए प्रो उत्तमा दीक्षित ने कहा कि काशी में नई पीढ़ी लकड़ी के खिलौने की चित्रकारी, भित्तियों पर चित्रकारी के क्षेत्र में नहीं आना चाह रही। कुछ कलाएँ आधुनिकता की भेंट चढ़ गई हैं। 

कार्यशाला के दूसरे सत्र में ‘काशी के लोक रंग’ विषय पर काशी कथा समूह द्वारा प्रस्तुति दी गई। जिसमें काशीकथा न्यास के सचिव डॉ अवधेश दीक्षित ने काशीकथा द्वारा काशी की संस्कृति को सहेजने के क्रम में किए जा रहे कार्यो को विस्तार से बताया। जिसमे काशीकथा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘रामलीला रामनगर’, साक्षात काशी, राम की नगरी रामनगर प्रमुख है। डॉक्यूमेंट्री के रूप में काशी के द्वादश आदित्य, द्वादश ज्योतिर्लिंग, काशी में चार धाम रामलीला रामनगर की प्रस्तुति हुई। इस अवसर अरविंद कुमार मिश्र द्वारा रामनगर की रामलीला की विशेषता व विविधता पर स्लाइड के माध्यम से प्रस्तुति दी गई। जिसमे रामलीला के विविध पक्ष मंचन, रामायण पाठ, पात्र प्रशिक्षण, आदि के साथ रामलीला के नेपथ्य से जुड़े पक्षों को विस्तार से बताया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो अखिलेश कुमार दुबे ने कहा कि काशी का लोक , शास्त्र को चुनौती देने वाला लोक है। काशी का लोक रंग ऐसा है कि यह एक प्रस्तर को भी शिखर तक ले जाता है। काशी में लोक संस्कृति के सारे सूत्र बिखरे पड़े हैं। 

 कार्यशाला का संचालन डॉ सुजीत चौबे व धन्यवाद ज्ञापन डॉ अमित पाण्डेय ने किया।

 इस अवसर पर उपस्थित गणमान्य लोगों में प्रो सिद्धनाथ उपाध्याय, प्रो राणा पी.बी. सिंह, प्रो सदाशिव द्विवेदी, डॉ सीमा मिश्रा, डॉ नीलम मिश्रा , डॉ राजीव वर्मा, डॉ धर्मजंग, अरविंद कुमार मिश्र , डॉ मलय झा,मृत्युंजय मालवीय, ओमप्रकाश मिश्र, डॉ धर्मेंद्र यादव,अभिषेक मिश्र, अभिषेक यादव, बलराम यादव, अजीत उपाध्याय आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे। 

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