
✍️अजीत उपाध्याय
रामनगर रामलीला के सातवे दिन का प्रसंग –
निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसीं कह्यो।
रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो॥
उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं।
बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं॥
अर्थ देखे तो,
अपनी वाणी को पवित्र करने के लिए तुलसी दास जी ने राम जी का यश कहा है। श्री रघुनाथजी का चरित्र अपार समुद्र है, किस कवि ने उसका पार पाया है? जो लोग यज्ञोपवीत और विवाह के मंगलमय उत्सव का वर्णन आदर के साथ सुनकर गावेंगे, वे लोग श्री जानकीजी और श्री रामजी की कृपा से सदा सुख पावेंगे।
सोरठा :
सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।
अर्थ देखे तो,
श्री सीताजी और श्री रघुनाथजी के विवाह प्रसंग को जो लोग प्रेमपूर्वक गाएँ-सुनेंगे, उनके लिए सदा उत्साह ही उत्साह है, क्योंकि श्री रामचन्द्रजी का यश मंगल का धाम है
राम बिदा मांगत कर जोरी। किन्ह प्रनामू बहोरी बहोरी।
प्रेमविवस परिवार सबू जानि सुलगं नरेश।
कुंवरी चधाई पल्किन्ह सूमिरे सिद्धि गणेश।।
आज की कथा किसी के लिए दुख का तो किसी के लिए सुख का अनुभव देती है जहां जनकपुर राम सीता के चले जाने से दुःखी हुवे वहीं अयोध्या उनके आने की खुशी में पूरी अयोध्या ही राममय हो जाती है।। आज के प्रसंग में चारो भाई विदा मांगने के लिए माता सुनैना के पास आते हैं ।ये सुनकर माता बहुत अधीर हो जाती है परन्तु राम जी के सुंदर अधर से निकले शब्दों से उनकी अधीरता दूर हो जाती है। तब महाराज जनक सभी पुत्रियों सीता, मांडवी, श्रुति केतु, उर्मिला सभी को पालकी में बड़े दुखी ह्रदय से बैठाती है।। वहां से रामलीला अयोध्या को चलती है जहां पूरी अयोध्या सभी मताओं के साथ पूरे बारात के आने की प्रतिक्षा करते है।सभी राजकुमारों और राजबहुवो को देख कर प्रसन्न हो जाते है तत्पश्चात सभी राजमहल में जाते जहां अनेक प्रकार से सभी का स्वागत होता है। विश्राम करते समय माता कौशल्या राम जी से सभी प्रसंगों को पूछती है तब राम जी कहते है सब कुछ आपके चरणों के प्रभाव से हो रहा है और आगे भी होगा ।। सुबह होते ही महाराज दशरथ और चारो भाई गुरु विश्वामित्र को विदा करते है यही आज के कथा का विश्राम हो जाता है।।आज की आरती माता कौशल्या के द्वारा सभी आठ मूर्तियों की होता है।