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धर्मस्थला में दबे सत्य और न्याय को उजागर करना जरूरी

के एस विमला / संजय पराते

 

हरे-भरे जंगलों और धीमी-धीमी बहती जलधाराओं से घिरा, और चूंकि यह बरसात का मौसम है — बहते पानी का तेज़ खिंचाव, बारिश की पुकार करते मोर और तोतों की चहचहाहट ; यह एक ऐसी जगह है, जो मन को प्रसन्न करती है। लेकिन यहाँ दुःख भारी है और मन पर सन्नाटा छाया हुआ है।

 

यह दक्षिण कन्नड़ जिले के बेलटांगड़ी तहसील के पास पद्मलता का घर है। पद्मलता एक किशोरी हैं, जो लगभग चार दशक पहले 1986 में उन लोगों के अन्याय और अहंकार का शिकार हुईं थीं, जिन्होंने धर्म की आड़ में उत्पीड़न का इस्तेमाल किया था। हाल ही में, कॉ. के. प्रकाश (पार्टी राज्य सचिव), के. एस. विमला, मुनीर कटिपल्ला (पार्टी दक्षिण कन्नड़ जिला सचिव) और अन्य स्थानीय नेताओं सहित एक माकपा प्रतिनिधिमंडल ने पद्मलता के घर का दौरा किया।

 

पद्मलता को याद करते हुए

 

धर्मस्थल और उसके आस-पास की कई तथाकथित “अप्राकृतिक मौतों” में से, जिन्हें “अप्राकृतिक मौत” के नाम पर हाशिये पर धकेल दिया गया था, यह पहला मामला था। इस मौत की गूंज विधान सभा में भी सुनाई दी थी। उस समय, तत्कालीन गृह मंत्री बी. रचैया पद्मलता के घर गए थे। लेकिन, चूँकि संदिग्ध आरोपी बहुत प्रभावशाली लोग थे, इसलिए मामला आगे नहीं बढ़ा — यह राख के नीचे दबे अंगारों की तरह ही रहा।

 

पद्मलता कॉलेज गई थी और फिर कभी वापस नहीं लौटी। उसका अपहरण कर लिया गया था। सत्तावन दिन बाद, उसका शव नेरिया नदी के पास चट्टानों के बीच मिला। उसने जो कपड़ा पहना था और उसकी कलाई पर जो घड़ी थी, उससे उसकी पहचान पुख्ता हुई। कोई भी अंदाज़ा लगा सकता था कि अपराधियों ने उसे हर तरह से शिकार बनाया था और फिर बेरहमी से उसकी हत्या कर दी थी। यह कोई अकेली घटना नहीं थी — ऐसा लग रहा था कि इस जगह पर देश का क़ानून या लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था।

 

उस समय, स्थानीय निकाय चुनावों में माकपा के सदस्य चुनाव लड़ रहे थे और उनमें से एक पद्मलता के पिता, देवानंद भी थे, जो एक किसान और माकपा नेता थे। उन पर चुनाव से हटने का दबाव था और चूंकि उन्होंने इसके आगे झुकने से इंकार कर दिया था, इसलिए उनकी बेटी की हत्या कर दी गई और संभवतः बलात्कार के बाद यह हत्या हुई थी।

 

यद्यपि धर्मस्थला एक धार्मिक केंद्र है, जहाँ लाखों लोग आते हैं और जिसके पास अपार भूमि, धन और संसाधन हैं, फिर भी यह ऐसी “अप्राकृतिक मौतों” के लिए उतना ही कुख्यात है। यह पूरा क्षेत्र एक नामी परिवार के चंगुल में है, जो अपनी विभिन्न अलौकिक खिताबों की आड़ में अपनी असीम सामंती-धार्मिक शक्ति का प्रदर्शन करता रहता है। जो कुछ भी उसकी नज़र में आता है — स्त्री, सोना, ज़मीन — उसे वह अपनी निजी संपत्ति मान लेता है और उसे हड़पने के लिए वे किसी भी हद तक जाकर अत्याचार करते हैं। 1960 और 70 के दशक में, जब अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में किसानों द्वारा भूमि सुधार अधिनियम के तहत काश्तकारी पंजीकरण और घोषणाएँ हो रही थीं, उसी दौरान सबसे ज़्यादा हिंसक धमकियाँ और हमले इसी क्षेत्र में हुए थे। उस समय, इस धार्मिक-सामंती शक्ति और अत्याचार का प्रकोप अपने चरम पर था। यह आज भी कई रूपों में जारी है।

 

उस शोकाकुल परिवार की मुखिया, पद्मलता की माँ, अपनी वाणी और स्मरण शक्ति दोनों खो चुकी हैं। लेकिन जब वह अपनी बेटी का नाम सुनती हैं, तो उनकी आँखों में अचानक आँसू आ जाते हैं। धीरे-धीरे उन्हें वह दिन याद आता है, जब उनकी बेटी गायब हुई थी। वह यह कहकर कॉलेज गई थी कि वह वापस आएगी, लेकिन कभी वापस नहीं लौटी। वह अपनी लड़खड़ाती आवाज़ और अवरूद्ध कंठ में कहती हैं, “धर्मस्थल वाले ही उसे ले गए थे। पुलिस ने कभी हमारी मदद नहीं की।”

 

इतनी सारी “अप्राकृतिक मौतें” क्यों?

 

1980 के दशक में, माकपा ने स्थानीय सामंती ताकतों को पहला झटका दिया था। तब पार्टी ने उनके इस हठ को चुनौती दी थी कि सब कुछ उनकी निगरानी में होना चाहिए — यहाँ तक कि चुनाव के उम्मीदवारों का फैसला भी उनकी निगरानी में ही होना चाहिए। चूँकि पार्टी ने अपने फ़ैसलों के अनुसार उम्मीदवार उतारे थे, इसलिए पद्मलता के पिता को अपनी बेटी की हत्या की त्रासदी झेलनी पड़ी। इसके बाद, कई अन्य “अप्राकृतिक मौतों”, हत्याओं और बलात्कारों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हुए और जन संगठनों के नेतृत्व में ज़िला केंद्र और बेंगलुरु में मार्च, सार्वजनिक प्रदर्शन किए गए और रैलियाँ निकाली गईं।

 

इस दौरान कई पुराने मामले सामने आए, जैसे : ज़मीन से जुड़े एक विवाद में एक हाथी के महावत नारायण और उसकी बहन की मौत, हाई स्कूल में प्रधानाध्यापिका के पद के लिए संघर्ष करने वाली वेदवल्ली को ज़िंदा जला देना, और बाद में 2012 में सौजन्या का मामला, जिसने फिर से जबरदस्त विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया। उस समय ही, एक आरटीआई से पता चला कि “अप्राकृतिक मौतों” के 400 से ज़्यादा मामले दर्ज किए गए थे।

 

संघर्ष की तीव्रता ने सिद्धारमैया सरकार को मामला सीबीआई को सौंपने पर मजबूर कर दिया। लेकिन उससे पहले, मामले की उस “आखिरी कड़ी” को, जो अंदरूनी सच्चाई उजागर करने वाला एक अहम गवाह बन सकता था, मारकर कुएँ में फेंक दिया गया। उस मामले में, प्रभावशाली संदिग्धों को बचाने के लिए एक निर्दोष व्यक्ति, संतोष राव, को बलि का बकरा बनाया गया।

 

सीबीआई जाँच में प्रारंभिक जाँच की कई खामियाँ उजागर हुईं और अदालत ने संतोष राव को बरी कर दिया और सरकार को गंभीर चूक करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया। इसके बाद बेंगलुरु और पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए — जैसे “बेलटांगडी चलो” रैली — लेकिन मामला वहीं रुक गया। इस बीच, और भी अन्य “अप्राकृतिक मौतों” के बारे में नए खुलासे सामने आते रहे।

 

सीरियल किलर” का मीडिया में पर्दाफ़ाश

 

हाल ही में समीर नाम के एक यू-ट्यूबर की रिपोर्ट ने तहलका मचा दिया, जिसने धर्मस्थल में तथाकथित “अप्राकृतिक मौतों” के “सीरियल किलर” का पर्दाफ़ाश करने का दावा किया था। पुलिस ने उस पर “अफ़वाह फैलाने” का मामला भी दर्ज किया। कई अन्य यू-ट्यूबर्स ने भी ऐसी ही रिपोर्ट्स प्रकाशित कीं। कुछ दिनों बाद, धर्मस्थला के सफाई विभाग में काम करने का दावा करने वाला एक गुमनाम व्यक्ति वकीलों के साथ अदालत में आया और उसने कबूल किया कि उसने कई शवों को दफनाया था, जिन्हें “अप्राकृतिक मौतें” माना गया था और अब वह अपराध बोध से ग्रस्त है। शुरुआत में, सरकार ने अपना हमेशा की तरह टालमटोल वाला रवैया अपनाया। यहाँ तक कि गृह मंत्री और मुख्यमंत्री ने भी ऐसा जताया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। लेकिन सोशल मीडिया के दबाव और जनाक्रोश के कारण, एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करना पड़ा।

 

माननीय आईपीएस अधिकारी प्रणव कुमार मोहंती के नेतृत्व में एसआईटी ने काम शुरू कर दिया है। एक हेल्पलाइन भी स्थापित की गई। इसके तुरंत बाद, एक लापता महिला अनन्या भट्ट की माँ, सुजाता भट्ट, ने एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने बरामद कंकालों (यदि और जब भी मिलें) का डीएनए परीक्षण कराने का अनुरोध किया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे उनकी बेटी के हैं या नहीं। हालाँकि “व्यक्तिगत कारणों” से एक सदस्य एसआईटी से हट गए हैं और एसआईटी के एक अन्य सदस्य के खिलाफ शिकायतों का मामला सामने आया है, फिर भी अब तक का काम संतोषजनक प्रतीत होता है। और अन्य लोग भी एसआईटी के पास अब शिकायत लेकर आगे आए हैं।

 

इस मामले का एक अन्य आयाम यह है कि धर्मस्थला मंजूनाथ-अन्नप्पा मंदिर एक हिंदू धार्मिक स्थल है, लेकिन इसकी देखरेख करने वाला हेग्गड़े परिवार जैन है, जिसके कारण कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि इसका नियंत्रण हिंदुओं को दिया जाना चाहिए।

 

मीडिया पर प्रतिबंध के आदेश

 

सोशल मीडिया (खासकर यू-ट्यूब चैनल) लगातार खोजी अभियान चला रहे हैं और स्थानीय सच्चाइयों को उजागर कर रहे हैं। एसआईटी ने उस गुमनाम व्यक्ति के आरोपों की भी जाँच शुरू कर दी है। हालाँकि एसआईटी ने खुदाई में किसी हड्डी या कंकाल के मिलने की सूचना नहीं दी है, लेकिन कई जानकार सूत्रों से पता चला है कि कई हड्डियाँ, कंकाल, महिलाओं के कपड़ों के टुकड़े और डेबिट कार्ड मिले हैं।

 

जब सीबीआई अदालत का फैसला आया, तो घटनाक्रम को दबाने के लिए, हेग्गड़े परिवार की ओर से कुछ लोगों ने उनका नाम उजागर करने या उनके बारे में रिपोर्ट करने पर रोक लगा दी। गंभीर आरोपों का सामना कर रहे लोगों के लिए अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के बहाने एकतरफा निषेधाज्ञा प्राप्त करना अब आम बात हो गई है। बाद में, निषेधाज्ञा के इस आदेश को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पलट दिया। फिर इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, लेकिन उसे इसमें सफलता नहीं मिली और सर्वोच्च न्यायालय ने उसी न्यायालय से इस पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया। जब यह बताया गया कि इस तरह के निषेधाज्ञा जारी करने वाले न्यायाधीश, हेग्गड़े परिवार और उनके कई संगठनों की कानूनी टीम का हिस्सा थे, जो पहले वकील के रूप में काम कर चुके थे, तो उसके द्वारा मामला दूसरे न्यायाधीश को सौंप दिया गया। स्वतंत्र पत्रकारों पर भी शारीरिक हमले हुए हैं।

 

अब मामला फिर गरमा गया है। स्थानीय स्तर पर भय का माहौल बनाने की कोशिशें चल रही हैं। पूर्व ग्राम पंचायत सदस्यों ने सार्वजनिक रूप से दावा किया है कि धर्मस्थल स्थित नेत्रवती में “अप्राकृतिक मृत्यु” के सभी पीड़ितों का अंतिम संस्कार पंचायत के नियमों के अनुसार किया गया था। चिंताजनक बात यह है कि स्थानीय पुलिस थाने में उस समय के सभी रिकॉर्ड नष्ट कर दिए गए हैं। निष्पक्ष जाँच की माँग करते हुए, सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि आधिकारिक साक्ष्य नष्ट न हों।

 

अगर एसआईटी की जाँच के दौरान ही इन सभी मामलों के रिकॉर्ड मिटा दिए गए हैं, तो यह “अदृश्य हाथों” की ताकत को दर्शाता है। सौजन्या मामले में भी जानबूझकर सबूत मिटाने के गंभीर आरोप लगे थे, और अब यहाँ भी यही संभव प्रतीत होता है। इसके लिए सरकार को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

 

आरएसएस-भाजपा की भूमिका

 

धर्मस्थला के मामलों को केवल “अप्राकृतिक मौतें” कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। ये ज़मीन और आजीविका के अधिकार सहित लोगों के अधिकारों से जुड़े मामले हैं। राज्य भर में चल रहे धर्मस्थला ग्रामीण विकास कार्यक्रमों — सूक्ष्म वित्त ऋण, अत्यधिक ब्याज दरें, पुनर्भुगतान के लिए उत्पीड़न आदि — की भी जाँच होनी चाहिए। माकपा ने माँग की है कि सभी “अप्राकृतिक मौतों” की जाँच, जिनमें पूर्व के सुप्रसिद्ध मामले (जैसे : वेदवती, पद्मलता, सौजन्या आदि मामले) भी शामिल हैं, विशेष जाँच दल (एसआईटी) को सौंपी जानी चाहिए। अगर कोई कानूनी अड़चन है, तो माकपा ने एक अलग विशेष जाँच दल (एसआईटी) की माँग की है। माकपा सामंती-धार्मिक आतंक और पुलिस, प्रशासन व अन्य राजनीतिक दलों की मिलीभगत के खिलाफ संघर्ष में सबसे आगे रही है।

 

दक्षिण कन्नड़ में आरएसएस का एक गुट यहां संघर्ष का हिस्सा है — जाहिरा तौर पर न्याय के लिए, लेकिन साथ ही इसमें एक अंतर्निहित हिंदुत्ववादी मोड़ भी है, जो ‘हिंदू मंदिर पर जैनों के स्वामित्व’ को चुनौती दे रहा है।

 

यह उल्लेखनीय है कि अन्य राजनीतिक दल चुप रहे हैं। सैकड़ों अप्राकृतिक मौतों, महिलाओं के साथ बलात्कार, गरीबों की ज़मीन हड़पने, कर्ज़ों पर अत्यधिक ब्याज दरों और भुगतान न करने पर संपत्ति ज़ब्त करने के बावजूद, विभिन्न राजनीतिक दलों और उनके मीडिया संस्थानों ने अपनी आवाज़ नहीं उठाई है — जो आज लोकतंत्र की बदहाल हालत को दर्शाता है।

 

भाजपा और संघ परिवार के संगठन और उनका मीडिया (जिसमें उनके मुख्यधारा का गोदी मीडिया भी शामिल है) यह कहकर इसे धार्मिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं कि “हिंदू धार्मिक प्रथाओं और संगठनों” पर हमला हो रहा है। वे जाँच के खिलाफ दुष्प्रचार अभियान चला रहे हैं और जनमत को प्रभावित करने के लिए इसे कम्युनिस्ट पार्टी और केरल सरकार की “हिंदू-विरोधी साजिश” भी बता रहे हैं। सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी और उसके नेता आत्मसमर्पण की मुद्रा में दिखाई दे रहे हैं।

 

सीपीआई(एम) “धर्मस्थला में पीड़ितों के साथ दफनाए गए सत्य और न्याय” को उजागर होने तक अंत तक लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है।

 

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